मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई ॥
गाल गुलाल लाल, मुख चंदन की सुगंध।
नैनन नेह निरंतर, बसत श्याम सुंदर बंद ॥
सुन री सखी मेरे, पायो मैं तो हरि नाम।
जनम जनम की तपस्या, फल पाया आज आम ॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिलन रच्यो।
तन मन धन सब अर्पण कीन्हो, हरि चरणन में रख्यो ॥
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट, मे
रो पति सोई ॥
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कृष्णा भजन